Monday, July 10, 2006

हुँकार

ऐ देव तुने क्या सोचा
हो जाएँगे हम नत तेरे समक्ष
नहीं जीत सके तुझसे तो क्या
मानेंगे नहीं हार हम ।

तू करता रहे अपनी मनमानी
और हम तेरी पूजा करें,
तू रुलाए हमें खून के आँसू
और हम तेरा गुणगान करें ।

जो कुछ जीवन में हमें है मिला
वो हमारा अपना पुरुषार्थ है,
पर जो कुछ तू छीन है लेता
वह केवल तेरा अपना स्वार्थ है ।

हमें जो मिला है मानव जीवन
हम लड़ने की शक्ती रखते हैं,
सौ बार गिर कर भी
उठने की हिम्मत रखते हैं ।

हमारे जीवन के पथ पर
तू जहाँ भी काँटे बिछाता है
उसे पार करके आगे
ये मानव ही बढ़ पाता है ।

अंतिम क्षण तक लड़ने का सामर्थ्य
अकेले मानव ही रख पाता है
हार की डर से तुझ जैसा कायर
पीठ दिखाकर भाग जाता है ।

विष निकला जब सागर से
तूने किया भोलेनाथ का आहवान
निकला जब सागर से अमृत तो
अकेले किया तुने उसका पान ।

शर्मोहया तो नहीं है तुझमे
न है अपने कर्त्तव्यों का ज्ञान
स्वर्ग में बने रहने की खातिर
हर लेता है जिस-तिस के प्राण ।

भरने दे तेरे पापों का घड़ा
उस दिन लेंगे हम तेरी खबर
माँगेगा तू अगर मौत भी हमसे
नहीं मिलेगी वो भी तुझको पर ।

तू क्या तेरी औकात है क्या
जो तू हमसे टकराने आया है
तुझ जैसे कई इन्द्रों को हमने
स्वर्ग से लाखों बार हटाया है ।
                                        -- उदिप्त गुप्ता

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