कभी आँखों से आँसू बनकर बहती है
और कभी यही व्यथा
आँखों से अँगारे बन बरसती है।
आँखों के आँसू देख
तू मुँह फ़ेर चला जाता है
पर इन्ही आँखों के अँगारों से
सँसार समस्त जल जाता है।
आँखों के आँसू कमज़ोरी
और अँगारे क्या जोश-जवानी हैं
इन्सान तू भूल है जाता
दोनों व्यथा की ही निशानी हैं।
-Udipta Gupta
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