Monday, June 05, 2006

मन की व्यथा

मन की व्यथा
कभी आँखों से आँसू बनकर बहती है
और कभी यही व्यथा
आँखों से अँगारे बन बरसती है।

आँखों के आँसू देख
तू मुँह फ़ेर चला जाता है
पर इन्ही आँखों के अँगारों से
सँसार समस्त जल जाता है।

आँखों के आँसू कमज़ोरी
और अँगारे क्या जोश-जवानी हैं
इन्सान तू भूल है जाता
दोनों व्यथा की ही निशानी हैं।
           -Udipta Gupta

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