Thursday, February 14, 2008

कलयुग का रावण

मैं कलयुग का रावण हूँ
खोज रहा हूँ राम ।
मिल जाएँ वो तब
होगा फ़िर सँग्राम ॥

दौड़ाई नज़र चहुँ ओर तो
रह गया हैरान ।
नज़र आ रहे बस मुझको
वहाँ भरे बस वही तीन शैतान ॥

हो रहा कोई भ्रम है मुझे
जो मेरी नज़रें धोखा खाए ।
आज मेरे सामने ये
कौन छल किये जाये ॥

हैरान न हो हमें देख रावण
कह करीब मेरे वो आया ।
उसके मुँह से अपना नाम सुन
मैं बड़ा चकराया ॥

यह कलयुग का विभीषण है
भीतु और दगाबाज़,
इस पर आज भी
नहीं करता कोई विश्वास ॥

वह कलयुग का कुँभकरण है
जो रहे हमेशा सोता,
मिल जाये समय पर खाने को
फिर कर लेता आँख मुँह कान बंद ॥
मैं कलयुग का रावण हूँ
ताकत मुठ्ठी में मेरी सारी
जिसने ना मानी बात मेरी
समझो ज़िन्दगी उसकी हारी ॥

ये कलयुग है, और इस युग मे
राम नहीं हैं आते,
इस सँसार को हम रावण
अपनी तरह हैं चलाते ॥

मैं कलयुग का रावण हूँ,
तू भी कलयुग का रावण है ॥

Monday, February 04, 2008

Books

Books to the ceiling,
Books to the sky,
My pile of books is a mile high.
How I love them! How I need them!
I'll have a long beard by the time I read them.

- Arnold Lobel