Friday, December 31, 2010

जीवन-यात्रा

क्या सोच रहा तू आज है,
गुज़र रहा एक पड़ाव है,
छुट रही है ये दुनिया अगर,
दुसरे के खुल रहे द्वार हैं |

क्या आगे है यह ज्ञात नहीं
जो गुज़र गया वो याद सही,
कोई फिर मिल जायेगा
सफ़र साथ कट जायेगा |

जीवन के इस दरिया में
ठराव ज़रा मुश्किल है
जो रुक गया वह मृत
चलता रहा वही जीवित है|