कहीं कुछ जुडा
कहीं कुछ घट गया
न ही कुछ बढ़ा
न कुछ सिमट गया
जो नहीं था मेरा मैंने दे दिया
जो मिला नहीं वो ले लिया
जब कुछ गया नहीं तो तू दुखी क्यों है
सब खो कर भी इतनी ख़ुशी क्यों है
यह जोड़ घटाव का ऐसा फेरा है
कहीं रात में भी धुप
तो कहीं दिन में भी अँधेरा है